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Friday, January 3, 2020

January 03, 2020

Fuedalism in India | Fuedalism in Hindi- Full Information

Fuedalism in India | Fuedalism in Hindi-  Full Information 



'सामंतवाद' मध्य कालीन भारत की एक विशेष व्यवस्था थी। इसका उत्थान कनिष्क के समय हुआ। उस समय 'सामंत' शब्द का प्रयोग कनिष्क के अधीन राजाओं के लिए किया जाता था। हर्षवर्धन के शासनकाल में सामंतों की संख्या में काफी वृद्धि हुई। राजपूत काल में सामंतवाद की व्यवस्था अपनी प्रगति के शिखर पर पहुँच गई थी।

सामंतवाद का अर्थ- 'सामंतवादी व्यवस्था' से अभिप्राय उस विस्तृत सामाजिक- राजनितिक व्यवस्था से है जो भूमि तथा उससे प्राप्त होने वाली आय के नियंत्रण तथा उसके उपयोग पर आधारित थी। 'सामंत' शब्द की उत्पत्ति लातानी शब्द 'फयूडम' से हुई है। सामंतवादी व्यवस्था के अन्तर्गत के बदले सेवाएँ प्राप्त की जाती थीं। राजा भूमि का स्वामी होता था। वह इसे आगे सामंतों में बाटँ  देता था। इसके बदले सामंत अपने स्वामी की सेवा करते थे।


सामंतवाद की मुख्य विशेषताएँ


सामंतवाद व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं।

1) सामंत- भूमि के स्वामि- सैद्धांतिक रूप में महाराजा समूची भूमि का स्वामि होता था। वह अपनी भूमि को जागीरों  के रूप में कुछ निश्चित शर्तों पर अपने अधीन सामंतों में बाटँ देता था। यदि कोई सामंत अनुदान की शर्तों का पालन करने मे असमर्थ होता था, तो राजा उसकी भूमि को जब्त कर सकता था। सामंत की मृत्यु के पश्चात यह राजा की इच्छा पर निर्भर करता था कि वह सामंत से सम्बंधित जागीर उसके परिवार के किसी अन्य सदस्य को दे अथवा न दे। किंतु व्यावहारिक रूप में सामंतों को प्राप्त भूमि पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती रहती थी।

2) सामंतो के प्रकार- राजपूत काल में तीन प्रकार के सामंत होते थे। पहली प्रकार के सामंत राजा के उच्चाधिकारी होते थे जो राजकीय सेवा के बदले वेतन के रूप में भूमि प्राप्त करते थे। दूसरी प्रकार के सामंत भूतपूर्व शासक होते थे जो पराजित होने पर राजा की अधीनता स्वीकार कर लेते थे। राजा उन्हें अपना सामंत नियुक्त कर देता था। तीसरी प्रकार के सामंत ऐसे पुरोहित थे जिन्हें राजा लगान- मुक्ति भूमि दान के रूप में प्रदान करता था।

3) सामंतों के वर्ग - राजपूत काल में सामंतों के अनेक वर्ग थे। बड़े सामंतों को महासामंत, महासामंतधिपति, मंडलेश्वर तथा छोटे सामंतों को राजा, ठाकुर, भोकता तथा भोगिका आदि कहा जाता था। इन सामंतों के आगे उप-सामंत होते थे।

सामंतो के कर्त्तव्य-  सामंतों को अनेक कर्त्तव्य निभाने होते थे-
i)     वे अपने अधीन प्रदेश में महाराजा के आदेशों के पालन          का वचन देते थे।
ii)   वे अपने अधीन प्रदेशों में शांति- व्यवस्था स्थापित रखने         के लिए उत्तरदायी थे।
iii)  वे अपने अधीन प्रदेश से भू-राजस्व एकत्रित करके                 महाराजा को उसका निश्चित भाग भेजते थे।
iv)  ये युद्ध अथवा आंतरिक विद्रोह के समय अपने सैनिकों          को भेजकर महाराजा की सहायता करते थे।
v)  उन्हें विशेष अवसरों पर महाराजा के दरबार में उपस्थित          होना पड़ता तथा नजराना देना पड़ता था।
vi) वे अपने अधीन क्षेत्र में जन- कल्याण का कार्य भी करते        थे।

सामंतों के अधिकार-
  राजपूत काल के सामंतों को अनेक अधिकार भी प्राप्त थे-  i)     वे अपने अधीन क्षेत्र से भू-राजस्व एकत्रित करते थे।
ii)   वे अपने अधीन क्षेत्र के लोगों के दीवानी तथा फौजदारी         मुकदमों के निर्णय करते थे तथा अपराधियों से जुर्माना           वसूल करते थे।
iii)  वे आलीशान भवनों में रहते थे और बड़ी- बड़ी उपाधियाँ        भी धारण करते थे।
iv)  वे अपने अधीन कर्मचारियों की नियुक्त करते थे।
v)   वे व्यावहारिक रूप में अपने अधीन भूमि के स्वामी होते         थे।

सामंतों पर नियंत्रण- सामंत यद्यपि अपने अधीनस्थ प्रदेशों की शासन-व्यवस्था चलाने के लिए स्वतंत्र थे किंतु उन पर कुछ प्रतिबंध भी थे-
महाराजा समय-समय पर सामंतों की सेना का निरीक्षण करता था।
महाराजा के आदेशों का पालन न करने वाले सामंतों की भूमि को जब्त किया जा सकता था अथवा उन्हें कम किया जा सकता था।
सामंतों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित किया जा सकता था।

सामंतवाद के गुण

सामंतवादी व्यवस्था के तत्कालीन भारतीय समाज पर निम्नलिखित सकारात्मक प्रभाव पडे-

1) प्रशासन में सुविधा- इस व्यवस्था के अन्तर्गत सत्ता का विकेन्द्रीकरण किया गया था। सामंतों को अपने अंतर्गत प्रदेशों से लगान एकत्रित करने तथा प्रशासनिक अधिकार दिए गए थे। ये सामंत अपनी स्थानीय समस्याओं का अच्छे ढंग से समाधान कर सकते थे। इस कारण प्रशासनिक मामलों में महाराजा का भार कुछ कम हो गया।

2) सामंतों द्वारा सैन्य सहयोग - देश की आन्तरिक शांति तथा बाह्य आक्रमणों के समय और देश की सुरक्षा के समय सामंत राजा को यथा सम्भव अपने सैनिक के साथ सहयोग देते थे।शेख

3) क्षेत्रीय भाषाओं का विकास- सामंतवादी व्यवस्था के अन्तर्गत दक्षिण भारत के राज्यों में तमिल, तेलुगु, कन्नड आदि प्रादेशिक भाषाओं का विकास हुआ। पश्चिम भारत के राज्यों में मराठी व गुजराती का तथा उत्तरी भारत में बंगाली, आसामी, उडिया, भोजपुरी आदि भाषाओं का विकास हुआ।

4) भवन-निर्माण तथा चित्रकला का विकास-  अनेक सामंतों ने मंदिरों तथा मूर्तियों के निर्माण तथा चित्रकला के विकास में भी उल्लेखनीय योगदान दिया।

सामंतवाद के अवगुण- 

समूचे रूप में सामंती व्यवस्था के निम्नांकित विनाशकारी परिवार  (नकारात्मक प्रभाव) हुए ।

1) राज्य की वित्तीय स्थिति का दुर्बल होना- राज्य की आय का बड़ा भाग सामंतों के पास ही रह जाता था। महाराजा को सामंतों की ओर से एक निश्चित आय ही प्राप्त होती थी। इसलिए राजा अपनी सैनिक- शक्ति को सुदृढ़ करने अथवा जन- कल्याण के कार्यों की ओर विशेष ध्यान नहीं दे सके।

2) सामंतो में परस्पर संघर्ष-  महाराजा से अधिक- से-अधिक जागीर प्राप्त करने के लिए सामंतों में परस्पर संघर्ष चलता रहता था।

3) निजी हितों की वृद्धि में संलग्न रहना- सामंत अपनी शक्ती बढ़ाने तथा अवसर पाकर अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित करने के प्रयास में लगें रहते थे।

4) किसानों की दुर्दशा-  सामंतों व्यवस्था के कारण किसानों की दशा बहुत दयनीय हो गई। उन्हें भूमि से बेदखल किया जा सकता था तथा नए कर लगाए जा सकते थे। सामंत उनसे विस्ति (बलात् श्रम) भी लेते थे। सामंत उन पर कई प्रकार के अत्याचार करते थे, किंतु किसान इस सम्बन्ध में महाराजा के समक्ष शिकायत नहीं कर सकते थे। इस कारण जहाँ महाराजा का अपनी प्रजा से सम्पर्क टूटा, वहीं कृषि के उत्पादन पर भी बुरा प्रभाव पड़ा।

6) समाज का धनी तथा निर्धन वर्गों में विभाजन- समाज धनी व निर्धन दो वर्गों में विभाजित हो गया। सामंती व्यवस्था के कारण देश कई जातियों में बँट गया। जाति प्रथा पहले से अधिक कठोर हो गई। समाज में अस्पृश्यता की बुराई बढ़ गई।

Sunday, August 26, 2018

August 26, 2018

अंग्रेज और बंगाल तथा मैसूर शासकों के साथ उनकी लड़ाईया।


 ➢  बंगाल
  • मुगल साम्राज्य के अंतर्गत आनेवाले प्रांतों में बंगाल सर्वाधिक सम्पन्न राज्य था।
  • औरंगजेब के म्रत्यु के कुछ वर्षों के बाद बंगाल के सूबेदार मुर्शिद कुली खाँ ने स्वयं को बंगाल का स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया।
  • प्लासी का युद्ध 23 जून, 1757 ई0 को अंग्रेजों के सेनापति राॅबर्ट क्लाइव और बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के बीच हुआ। जिसमें नवाब अपने सेनापति मीरजाफर की धोखाधड़ी करने के कारण पराजित हुआ। अंग्रेजों ने मीरजाफर को बंगाल का नवाब बनाया ।

British flag
ब्रिटिश भारत 

➢   बंगाल के नवाब 

  1. मुर्शिद कुली खाँ    1713- 1727 ई0
  2.  शुजाउद्दीन          1727- 1739 ई0
  3. सरफराज खाँ       1739- 1740 ई0
  4. अलीवर्दी खाँ        1740- 1756 ई0
  5. सिराजुद्दौला         1756- 1757 ई0
  6. मीरजाफर           1757- 1760 ई0
  7. मीरकासिम         1760- 1763 ई0
  8. मीरजाफर          1763- 1765 ई0
  9. निजाम-उद्दौला    1765- 1766 ई0
  10. शैफ-उद्दौला        1766- 1770 ई0
  11. मुबारक-उद्दौला   1770- 1775 ई0
  • क्लाइव के हाथों की कठपुतली नवाब मीरजाफर को अंग्रेजों ने 1760 ई0 में हटाकर उसके दामाद मीरकासिम को बंगाल का नवाब बनाया।
  • मीरकासिम ने अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद से मुंधेर  (मुगदलपुर) स्थानान्तरित किया।
  • बक्सर का युद्ध 1764 ई0 में अंग्रेजों और मीरकासिम, अवध के नवाब शुजाद्दौला और मुगल सम्राट् शाहआलम-II के बीच हुआ। इस युद्ध में भी अंग्रेज विजयी हुए। इस युद्ध में अंग्रेज सेनापति हेक्टर मुनरो था।
  • बक्सर के युद्ध के बाद एक बार फिर मीरकासिम की जगह मीरजाफर को बंगाल का नवाब बना दिया।
  • 5 जनवरी, 1765 ई0 में मीरजाफर की म्रत्यु हो गयी।



   मैसूर
  • 1761 ई0 में हैदर अली मैसूर का शासक बना।
  • हैदर अली की म्रत्यु 1782 ई0 में द्वितीय आँग्ला-मैसूर युद्ध के दौरान हो गयी।

  मैसूर राज्य के अंग्रेजों के साथ प्रमुख युद्ध।

      प्रमुख युद्ध               वर्ष        अंग्रेजी गवर्नर                                                       जनरल 
  1. प्रथम आँग्ला-मैसूर युद्ध    1767-69 
  2. द्वितीय आँग्ला-मैसूर युद्ध  1781-84  वारेनहेस्टिंग्स 
  3. तृतीय आँग्ला-मैसूर युद्ध   1790-92   कार्नवालिस 
  4. चतुर्थ आँग्ला-मैसूर युद्ध    1799      लॉर्ड वेलेजली 

  • हैदर अली का उत्तराधिकारी उसका पुत्र टीपू सुल्तान हुआ।
  • 1787 ई0 में टीपू ने अपनी राजधानी श्रीरंगपत्तनम में 'पादशाह' की उपाधि धारण की।
  • टीपू सुल्तान ने अपनी राजधानी श्रीरंगपत्तनम में स्वतन्त्रता का वृक्ष लगवाया और साथ ही जैकोबिन क्लब का सदस्य बना।
  • टीपू की म्रत्यु चतुर्थ आँग्ला-मैसूर युद्ध के दौरान 1799 ई0 में हो गयी।

  मैसूर राज्य के अंग्रेजों के साथ प्रमुख संधियाँ

    महत्वपूर्ण संधियाँ 

  1. द्वितीय आँग्ला-मैसूर युद्ध         मद्रास की संधि       
  2. द्वितीय आँग्ला-मैसूर युद्ध         मंगलूर की संधि      
  3. द्वितीय आँग्ला-मैसूर युद्ध        श्रीरंगपत्तनम की                                                 संधि 

नोटः अंग्रेजों की भारत में प्रथम महत्वपूर्ण विजय बंगाल विजय को माना जाता है।



August 26, 2018

पुष्यभूति वंश।


                    पुष्यभूति वंश

 ➢ पुष्यभूति वंश के बारे में महत्वपूर्ण बातें:


  • गुप्त वंश के पतन के बाद हरियाणा के अम्बाला जिले के थानेश्वर नामक स्थान पर नरवर्ध्दन के द्वारा पुष्यभूति वंश की स्थापना हुई।
  • पुष्यभूति वंश का सबसे प्रतापी शासक प्रभाकरवर्धन था।
  • प्रभाकरवर्धन ने अपने पुत्री राजश्री का विवाह मौखिरी वंश के शासक ग्रहवर्मन से किया।
  • मालवा नरेश देवगुप्त और गौड़ शासक मिलकर ग्रहवर्मन की हत्या कर दी।
  • प्रभाकरवर्धन के बाद राज्यवर्धन गद्दी पर बैठा, जिसकी हत्या शशांक (गौड़ शासक) नेे कर दी।
  • राज्यवर्धन के बाद 606 ई0 में 16 वर्ष की अवस्था में हर्षवर्धन राजगद्दी पर बैठा।
  • हर्षवर्धन की प्रथम राजधानी थानेश्वर (कुरुक्षेत्र के निकट) थी। बाद में इसने अपनी राजधानी कन्नौज स्थापित की।
  • हर्षवर्धन के दरबार के प्रसिद्ध कवि थे- बाणभट्ट
  • हर्षवर्धन की रचना है- नागानंद, रत्नावली, और प्रियदर्शिका।
  • हर्षवर्धन शिव का उपासक था।
  • चीनी यात्री ह्वेनसांग हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत आया था।
  • ह्वेनसांग को यात्रियों में राजकुमार, नीति का पंडित और वर्तमान शाक्यमुनि कहा जाता है।
  • ह्वेनसांग भारत में नालंदा विश्वविद्यालय में पढ़ने और बौद्ध ग्रंथ संग्रह करने के उद्देश्य से आया था।
  • हर्षवर्धन शिलादित्य के नाम से जाना है।
  • हर्ष ने परम् भट्टारक नरेश की उपाधि धारण की थी।
  • हर्षवर्धन प्रतिदिन 500 ब्राह्मणों और 1000 बौद्ध भिक्षुओं को भोजन कराता था।
  • हर्ष ने 643 ई0 में कन्नौज और प्रयाग में दों विशाल धार्मिक सभाओं का आयोजन किया। हर्षवर्धन के द्वारा प्रयाग में आयोजित सभा को मोक्ष-परिषद् कहा गया है।
  • बाणभट्ट के हर्षचरित के अनुसार हर्ष की मंत्रिपरिषद् इस प्रकार थी-
  1. अवन्ति-  युद्ध और शांति का मंत्रि।
  2. सिंहनाद- हर्ष की सेना का महासेनापति।
  3. कुन्तल- अश्व सेना का मुख्य अधिकारी।
  4. स्कन्दगुप्त- हस्ति सेना का प्रमुख।
  • साधारण सैनिकों को चाट और भाट, अश्व सेना के अधिकारियों को बृहदेश्वर, पैदल सेना के अधिकारियों को बलाधिकृत और महाबलाधिकृत कहा जाता था।

 नोट:  हर्षचरित के लेखक है- बाणभट्ट

Saturday, August 25, 2018

August 25, 2018

मगध राज्य।


                    मगध राज्य


 ➢ मगध राज्य के बारे में महत्वपूर्ण बिन्दु:


  • मगध के सबसे प्राचीन वंश के संस्थापक बृहद्रथ था।
  • जरासंध के पिता का नाम बृहद्रथ था।
  • मगध की राजधानी गिरिब्रज (राजग्रह) थी।
  • मगध की गद्दी पर बिम्बिसार 545 ई0 पू0 में बैठा।
  • बिम्बिसार हर्यक वंश का संस्थापक था।
  • बिम्बिसार ने ब्रह्मदत्त को हराकर अंग राज्य को मगध में मिला लिया।
  • बिम्बिसार ने राजग्रह का निर्माण कर उसे अपनी राजधानी बनाया।
  • बिम्बिसार ने मगध पर करीब 52 वर्षों तक शासन किया।
  • महात्मा बौद्ध की सेवा में बिम्बिसार ने राजवैद्य जीवक को भेजा था। अवंति के राजा प्रद्योत जब पाण्डु रोग से ग्रसित थे उस समय भी बिम्बिसार ने जीवक को उनकी सेवा के लिए भेजा था।
  • बिम्बिसार ने वैवाहिक संबंध स्थापित कर अपने साम्राज्य का विस्तार किया। इसने कोशल नरेश प्रसेनजित की बहन महाकोशला से, वैशाली के चेटक की पुत्री चेल्लना से तथा मद्र देश (आधुनिक पंजाब) की राजकुमारी झेमा से शादी की।
  • बिम्बिसार की हत्या उसके पुत्र अजातशत्रु ने कर दी और वह 493 ई0 पू0 में मगध की गद्दी पर बैठा।

  • अजातशत्रु का उपनाम कुणिक था।
  • अजातशत्रु ने 32 वर्षों तक मगध पर शासन किया।
  • अजातशत्रु प्रारंभ में जैनधर्म का अनुयायी था।
  • अजातशत्रु के सुयोग्य मंत्री का नाम वर्षकार (वरस्कार) था। इसी की सहायता से अजातशत्रु ने वैशाली पर विजय प्राप्त की।
  • अजातशत्रु की हत्या उसके पुत्र उदायिन् ने 461 ई0 पू0 में कर दी और वह मगध की गद्दी पर बैठा।
  • उदायिन् ने पाटिलग्राम की स्थापना की।
  • उदायिन् भी जैनधर्म का अनुयायी था।
  • हर्यक वंश का अंतिम राजा उदायिन् का पुत्र नागदशक था।
  • नागदशक को उसके अमात्य शिशुनाग ने 412 ई0 पू0 में अपदस्थ करके मगध पर शिशुनाग वंश की स्थापना की।
  • शिशुनाग ने अपनी राजधानी पाटलिपुत्र से हटाकर वैशाली में स्थापित की।
  • शिशुनाग का उत्तराधिकारी कालाशोक पुनः राजधानी को पाटलिपुत्र ले गया।
  • शिशुनाग वंश का अंतिम राजा नंदिवर्धन था।
  • नंदवंश का संस्थापक महापद्म नंद था। 
  • नंदवंश का अंतिम शासक घनानंद था। यह सिकंदर महान का समकालीन था। इसे चंद्रगुप्त मौर्य ने युद्ध में पराजित किया और मगध पर एक नये वंश 'मौर्य वंश' की स्थापना की।

नोटः  बिम्बिसार बौद्ध धर्म का अनुयायी था।
August 25, 2018

सिन्धु सभ्यता।

          

                      सिन्धु सभ्यता


 ➢ सिन्धु सभ्यता के बारे में महत्वपूर्ण बातें:



  • सिन्धु सभ्यता की खोज रायबहादुर दयाराम साहनी ने की थी।
  • रेडियोकार्बन जैसी नवीन विश्लेषण पध्दति के द्वारा सिन्धु सभ्यता की सर्वमान्य तिथि 2350 ई0 पू0 से 1750 ई0 पू0 मानी गयी है।
  • इस सभ्यता के निवासी द्रविड़ एंव भुमध्यसागरीय थे।
  • सिन्धु सभ्यता या सैंधव सभ्यता नगरीय सभ्यता थी। इस सभ्यता में 6 नगरों को बड़ी नगरों की संज्ञा दी गयी है, ये हैं- मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, गणवारीवाला, धौलावीरा राखीगढ़ी और कालीबंगन। 
  • स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात हड़प्पा संस्कृति के सर्वाधिक स्थल गुजरात में खोजे गए है।
  • जोते हुए खेत और नक्काशीदार ईटों का प्रयोग कालीबंगन नगर में हुआ।
  • मोहनजोदड़ो से प्राप्त अन्नागार को सिन्धु सभ्यता की सबसे बड़ी इमारत मानी जाती है।
  • मोहनजोदड़ो से प्राप्त बृहत् स्नानागार एक प्रमुख स्मारक है, जिसके मध्य स्थित स्नानकुंड 11.88 मीटर लम्बा, 7.01 मीटर चौड़ा और 2.43 मीटर गहरा है।
  • मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक शील पर तीन मुख वाले देवता (पशुपति नाथ) की मुर्ति मिली है। उनके चारों ओर हाथी, गैंडा, चीता, और भैया विराजमान है।
  • मोहनजोदड़ो से नर्तकी की एक कांस्य मूर्ति मिली है।
  • हड़प्पा की मोहरों पर सबसे अधिक एक श्रृंगी पशु का अंकन मिलता है।
  • सिन्धु सभ्यता का बन्दरगाह था- लोथल और सुतकोतदा।
  • सिन्धु सभ्यता की लिपी भावचित्रात्मक है। यह लिपी दाईं से बाईं की ओर लिखी जाती थी। जब अभिलेख एक से अधिक पंक्तियों का होता था तो पहली पंक्ति दाईं से बाईं और दूसरी बाईं से दाईं ओर लिखी जाती थी।
  • सिन्धु सभ्यता के लोगों ने नगरों तथा घरों के विन्यास के लिए ग्रीड पद्धति अपनाई।
  • घरों के दरवाजे और खिड़कियाँ सड़क की ओर न खुलकर पिछवाड़े की ओर खुलते थे। केवल लोथल नगर के घरों के दरवाजे मुख्य सड़क की ओर खुलते थे।
  • सिन्धु सभ्यता में मुख्य फसल थी- गेहूँ और जौ।
  • रंगपुर और लोथल से चावल के दाने मिले है, जिनसे धान की खेती होने का भी प्रमाण मिलता है।
  • सिन्धु सभ्यता के लोग मिठाई के लिए शहद का प्रयोग करते थे।


  • सिन्धु सभ्यता के लोग यातायात के लिए दो पहियों और चार पहियों वाली बैलगाड़ी या भैसगाड़ी का उपयोग करते थे।
  • इस सभ्यता के लोग धरती को उर्वरता की देवी मानकर उसकी पूजा किया करते थे।
  • वृक्ष-पूजा और शिव-पूजा के प्रचलन के सबूत भी सिन्धु सभ्यता से मिलते है।
  • सिन्धु सभ्यता में मातृदेवी की उपासना सर्वाधिक प्रचलित थी।
  • स्वस्तिक चिन्ह संभवतः हड़प्पा सभ्यता की देन है। इस चिन्ह से सूर्योपासना का अनुमान लगाया जाता है।
  • सिन्धु सभ्यता के नगरों में किसी भी मंदिर के अवशेष नहीं मिले है।
  • पशुओं में कुबड़ वाला साँड़, इस सभ्यता के लोगों के लिए विशेष पुज्यनीय था। 
  • सिन्धु सभ्यता के लोग सूती और ऊनी वस्त्रों का उपयोग करते थे।
  • मनोरंजक के लिए सिन्धुवासी मछली पकड़ना, शिकार करना, पशु-पक्षियों को आपस में लड़ाना, चौपड़ और पासा आपस में खेलना आदि साधनों का प्रयोग करते थे।
  • सिन्धु घाटी के लोग तलवार से परिचित नहीं थे।
  • पर्दा-प्रथा और वेश्यावृत्ति सिन्धु सभ्यता में प्रचलित थी।
  • शवों को जलाने और गाड़ने यानी दोनों प्रथाएँ प्रचलित थी। हड़प्पा में शवों को गाड़ने और मोहनजोदड़ो में शवों को जलाने की प्रथा विद्यमान थी। 
  • सिन्धु सभ्यता के विनाश का संभवतः सबसे प्रभावी कारण बाढ़ था।

नोट: मेसोपोटामिया के अभिलेखों में वर्णित मेलूहा                शब्द का अभिप्राय सिन्धु सभ्यता से ही है।

Friday, August 24, 2018

August 24, 2018

वैदिक सभ्यता।


               वैदिक सभ्यता


  • वैदिककाल का विभाजन दों भागों में किया गया है- 
  1. ऋग्वैदिक काल- 1500-1000 ई0 पू0 
  2. उत्तर वैदिककाल - 1000- 500 ई0 पू0पू0
  • आर्यों द्वारा निर्मित सभ्यता वैदिक सभ्यता कहा जाता है।
  • आर्य सर्वप्रथम पंजाब और अफगानिस्तान में बसे। मैक्स मूलर ने आर्यों का मूल निवास- स्थान मध्य एशिया को माना है।
  • आर्यों द्वारा विकसित सभ्यता ग्रामीण सभ्यता थी।
  • आर्यों की प्रशासनिक ईकाई आरोहि क्रम से इन पाँच भागों में बंटा था- कुल, ग्राम, विश, जन और राष्ट्र
  • ग्राम के मुखिया को ग्रामिणी और विश का प्रधान विशपति कहलाते थे। जन के शासक को राजन कहा जाता है।
  • समाज की सबसे छोटी ईकाई कुल या परिवार थी, जिसका मुखिया पिता होता था, जिसे कुलप भी कहा जाता था।
  • आर्यों का समाज पितृप्रधान था।
  • ऋग्वैदिक समाज चार वर्णों में विभाजित था। वे वर्ण थे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र। यह विभाजन व्यवसाय पर आधारित था। ऋग्वेद के 10वें मंडल के पुरुषसूक्त में चतुर्वर्णों का उल्लेख मिलता है। इसमें कहा गया है कि ब्राह्मण परम पुरुष के मुख से, क्षत्रिय उनकी भुजाओं से, वैश्य उनकी जाँघों से और शुद्र उनके पैरों से उत्पन्न हुए हैं।
  • वैदिककाल में बाल विवाह और पर्दा-प्रथा का प्रचलन नहीं था।
  • लेन-देन में वस्तु विनियम की प्रणाली प्रचलित थी।
  • आर्यों का मुख्य पेय पदार्थ सोमरस था। वह वनस्पति से बनाया जाता था।
  • आर्यों के मनोरंजन के मुख्य साधन थे- संगीत, रथदौड़, घुड़दौड़ और द्यतक्रिड़ा 
  • आर्यों का मुख्य व्यवसाय पशुपालन और कृषि था।


  • आर्यों का प्रिय पशु घोड़ा और सर्वाधिक प्रिय देवता इन्द्र  थे। आर्यों द्वारा खोजी गयी धातु लोहा थी। जिसे श्याम अयस् कहा जाता था। ताँबे को लोहित अयस् कहा जाता था।
  • ऋग्वेद में उल्लिखित सभीं नदियों में सरस्वती सबसे महत्वपूर्ण तथा पवित्र मानी जाती थी।
  • उत्तर वैदिककाल में इन्द्र के स्थान पर प्रजापति सर्वाधिक प्रिय देवता हो गए थे।
  • उत्तर वैदिककाल में राजा के राज्याभिषेक के समय राजसूर्य यज्ञ का अनुष्ठान किया जाता था।
  • उत्तर वैदिककाल में वर्ण व्यवसाय की बजाय जन्म के आधार पर निर्धारित होने लगे थे।
  • 'सत्यमेवजयते' मुण्डकोपनिषद् से लिया गया है।
  • गायत्री मंत्र सविता नामक देवता को संबोधित है, जिसका संबंध ऋग्वेद से है।
  • महाकाव्य दो है- महाभारत और रामायण 
  • महाभारत का पुराना नाम जयसंहिता है। यह विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य है
  • उपनिषदों की कुल संख्या है- 108
  • महापुराणों की संख्या है-  18
  • वेदांत की संख्या है-  6

नोट:  आर्यों की भाषा संस्कृत थी।

 ➢ ऋग्वैदिककालीन नदियाँ

   प्राचीन नाम     आधुनिक नाम
  1. क्रुभ                 कुर्रम 
  2. कुभा                काबुल
  3. वितस्ता            झेलम
  4. आस्किनी          चुनाव
  5. परुषणी            रावी
  6. शतुद्रि              सतलज 
  7. विपाशा            व्यास
  8. सदानीरा           गंडक
  9. दृसध्दती           घग्घर 
  10. सुवस्तु              स्वात्
  ऋग्वैदिककालीन देवता

   देवता           संबंध 
  1. इन्द्र          युद्ध का नेता और वर्षा का देवता।
  2. अग्नि        देवता और मनुष्य के बीच मध्यस्थ।
  3. वरुण        पृथ्वी और सूर्य के निर्माता, समुद्र का देवता।
  4. सोम         वनस्पति का देवता।
  5. विष्णु        विश्व के संरक्षक और पालनकर्ता 


Thursday, August 23, 2018

August 23, 2018

मौर्य साम्राज्य।

 

                  मौर्य साम्राज्य


 राजधानी:   पाटलिपुत्र (पटना)
 भाषा:         संस्कृत, प्रकति
 धर्म:           बौद्ध, जैन एंव आजीवक
 शासन:       राजतंत्र 


 ➢ मौर्य वंश के बारे में महत्वपूर्ण बातें:


  • मौर्य वंश का संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य था।
  • चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म 345 ई0 पू0 में हुआ था।
  • घनानंद को हराने में चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य की मदद की थी, जो बाद में चंद्रगुप्त मौर्य का प्रधानमंत्री बना।
  • चाणक्य (कौटिल्य/ विष्णुगुप्त) द्वारा लिखित पुस्तक है अर्थशास्त्र, जिसका संबंध राजनीती से है।
  • नंद वंश के विनाश करने में चंद्रगुप्त मौर्य ने कश्मीर के राजा पर्वतक से सहायता प्राप्त की थी।
  • चंद्रगुप्त मगध की राजगद्दी पर 322 ई0 पू0 में बैठा।
  • चंद्रगुप्त ने 305 ई0 पू0 में सेल्यूकस निकेटर को हराया।
  • सेल्यूकस निकेटर ने अपनी पुत्री कार्नेलिया की शादी चंद्रगुप्त मौर्य के साथ कर दी और युद्ध की संधि-शर्तों के अनुसार चार प्रांत काबुल, कंधार, हेरात और मकरान चंद्रगुप्त को दिए।
  • चंद्रगुप्त मौर्य ने जैन गुरु भद्रबाहु से जैनधर्म की दीक्षा ली थी।
  • मेगास्थनीज सेल्यूकस निकेटर का राजदूत था, जो चंद्रगुप्त के दरबार में रहता था।
  • मेगास्थनीज द्वारा लिखी गयी पुस्तक इंडिका है।
  • चंद्रगुप्त मौर्य और सेल्यूकस निकेटर के बीच हुए युद्ध का वर्णन एप्पियानस ने किया है।
  • प्लूटार्क के अनुसार चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस को 500 हाथी उपहार में दिया था।


  • चंद्रगुप्त ने अपना अंतिम समय कर्नाटक के                श्रवणबेलगोला नामक स्थान पर बिताया।

    • चंद्रगुप्त मौर्य की म्रत्यु 298 ई0 पू0 में श्रवणबेलगोला में उपवास के द्वारा हुई।



    • चंद्रगुप्त मौर्य का उत्तराधिकारी बिंदुसार हुआ, जो 298 ई0 पू0 में मगध की राजगद्दी पर बैठा।
    • अमित्रघात के नाम से बिंदुसार जाना जाता है। अमित्रघात का अर्थ है- शत्रु विनाशक
    • बिंदुसार आजीवक सम्प्रदाय का अनुयायी था।
    • 'वायुपुराण' में बिंदुसार को भद्रसार (वारिसार) कहा गया है।
    • स्टैबो के अनुसार सीरीयन नरेश एण्टियोकस ने बिंदुसार के दरबार में डाइमेकस नामक राजदूत भेजा। इसे ही मेगास्थनीज का उत्तराधिकारी माना जाता है।
    • जैन ग्रंथों में बिंदुसार को सिहंसेन कहा गया है।
    • बिंदुसार के शासनकाल में तक्षशिला में हुए दो विद्रोहों का वर्णन है। इस विद्रोहों को दबाने के लिए बिंदुसार ने पहले सुसीम को और बाद में अशोक को भेजा।
    • एथीनियस के अनुसार बिंदुसार ने सीरीयन नरेश एण्टियोकस से मदिरा, सूखे अंजीर और एक दार्शनिक भेजने की प्रार्थना की थी।
    • बौद्ध विद्वान तारानाथ ने बिंदुसार को 16 राज्यों का विजेता बताया है।




    • बिंदुसार का उत्तराधिकारी अशोक महान हुुआ जो 269 ई0 पू0  में मगध की राजगद्दी पर बैठा।


  • अशोक की माता का नाम सुभद्रंगी था।

    • राजगद्दी पर बैठने के समय अशोक अवंति का राज्यपाल था।
    • मास्की और गुर्जरा अभिलेख में अशोक का नाम अशोक मिलता है।
    • पुराणों में अशोक को अशोकवर्धन कहा गया है।
    • अशोक ने अपने अभिषेक के आठवें वर्ष लगभग 261 ई0 पू0 में कलिंग पर आक्रमण किया और कलिंग की राजधानी तोसली पर अधिकार कर लिया।
    • प्लिनी का कथन है कि म्रिस का राजा फिलाडेल्फस टाॅलमी- II ने पाटलिपुत्र में डियानीसियस नाम का एक राजदूत भेजा था।
    • उपगुप्त नामक बौद्ध भिक्षु ने अशोक को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी।
    • अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा।


    • मौर्य वंश का अंतिम शासक बृहद्रथ था। इसकी हत्या इसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने 185 ई0 पू0 में कर दी और शुंग वंश की नींव डाली।
    • अशोक के समय मौर्य साम्राज्य में प्रांतों की संख्या 5 थी। प्रांतों को चक्र कहा जाता था।
    • प्रांतों के प्रशासक कुमार या आर्यपुत्र या राष्ट्रिक कहलाते थे।
    • प्रांतों का विभाजन विषय में किया गया था, जिसका प्रशासक विषयपति होता था।
    • प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम थी, जिसका मुखिया ग्रामीक कहलाता था।
    • भारत में शिलालेख का प्रचलन सर्वप्रथम अशोक ने ही किया।
    • अशोक के शिलालेखों में ब्राह्मी, खरोष्टी, ग्रीक और अरमाइक लिपि का प्रयोग हुआ है।
    • ग्रीक और अरमाइक लिपि का अभिलेख अफगानिस्तान से,खरोष्टी लिपि का अभिलेख उत्तर पश्चिम पाकिस्तान से और शेष भारत से ब्राह्मी लिपि का अभिलेख मिले हैं।
    • अशोक के शिलालेख की खोज 1750 ई0 में पाद्रेटी फेन्थैलर ने की थी। इसकी संख्या- 14 है।
    • अशोक के अभिलेखों को पढ़ने में सबसे पहली सफलता 1837 ई0 में जेम्स प्रिसेप को हुई।

    नोट:  विश्वविजेता सिकंदर महान का सेल्यूकस निकेटर          सेनापति था।