चोल वंश
➢ चोल वंश के बारे में महत्वपूर्ण बातें:
- चोल वंश के संस्थापक विजयालय (850- 87 ई0)
- इसकी राजधानी तांजाय (तंजौर या तंक्षुवर) था।
- विजयालय ने नरकेसरी की उपाधि धारण की थी।
- चोलों का स्वतंत्र राज्य आदित्य प्रथम ने किया था।
- पल्लवों पर विजय पाने के बाद आदित्य प्रथम ने कोदण्डराम की उपाधि धारण की।
- चोल वंश के प्रमुख राजा था- परांतक-I, राजराज-I, राजेंद्र-I, राजेंद्र-II, और कुलोत्तंग।
- तक्कोलम के युद्ध में राष्ट्रकूट नरेश कृष्ण-III ने परांतक-I को पराजित किया। इस युद्ध में परांतक-I का बड़ा लड़का राजादित्य मारा गया।
- राजराज-I ने श्रीलंका पर आक्रमण किया। वहाँ के राजा महिम-V को भागकर श्रीलंका के दक्षिण जिला रोहण में शरण लेनी पड़ी।
- राजराज-I ने श्रीलंका के विजित प्रदेशों को चोल साम्राज्य का एक नया प्रांत मुम्ड़िचोलमंडलम बनाया और पोलन्नरुवा को इसकी राजधानी बनाया।
- राजराज-I शैव धर्म का अनुयायी था।
- राजराज-I ने तांजौर राजराजेश्वर का शिवमंदिर बनवाया।
- चोल साम्राज्य का सर्वाधिक विस्तार राजेंद्र-I के शासनकाल में हुआ।
- बंगाल के पाल शासक महिपाल को पराजित करने बाद राजेंद्र-I ने गंगैकोडचोल की उपाधि धारण की और अपनी नवीन राजधानी गंगैकोड चोलपुरम के निकट चोलगंगम नामक विशाल तालाब का निर्माण करवाया।
- राजेंद्र-II ने प्रकेसरी की उपाधि धारण की।
- वीर राजेंद्र ने राजकेसरी की उपाधि धारण की।
- चोल वंश का अंतिम राजा राजेंद्र-III था।
- चोलों और पश्चिमी चालुक्य के बीच शांति स्थापित करने में गोवा के कदम्ब शासक जयकेश-I ने मध्यस्थ की भूमिका निभाई थी।
- कुलोत्तंग-II ने चिदंबरम मंदिर में स्थित गोविंदराज (विष्णु) की मूर्त्ति को समुद्र में फेकवा दिया, कालांतर में वैष्णव आचार्य रामानुजाचार्य ने उक्त मूर्त्ति का पुुनध्दार किया और उसे तिरुपति के मंंदिर में प्राण प्रतिष्ठित किया।
- संपूर्ण चोल साम्राज्य 6 प्रान्तों में बंटे होते थे। प्रान्त को मंडलम् कहा जाता था। मंडलम् कोटटम् में, कोटटम् नाडु में और नाडु कई कुर्रमों (गाँव) में बंटे होते थे।
- नाडु के स्थानीय सभा को नाटूर और नगर के स्थानीय सभा को नगरतार कहा जाता था।
- चोल काल में भूमिकर उपज का 1/3 भाग हुआ करता था।
- तमिल कवियों में जयंगोंदर प्रसिद्ध कवि था, जो कुलोतुँग प्रथम का राजकवि था। उसकी रचना है- कलिंगतुपर्णि
- कंबन, औटटक्कुटटन और पुगलेंदि को तमिल साहित्य का त्रिरत्न कहा जाता हैं।
- पंप, पोन्न और रन्न कन्नड़ साहित्य के त्रिरत्न माने जाते हैं।
- पर्सी ब्राऊन ने तंजौर के बृहदेश्वर मंदिर के विमान को भारतीय वास्तुकला का निकष माना है।
- चोककालीन नटराज प्रतिमा को चोल कला का सांस्कृतिक सार या निचोड़ कहा जाता है।
- चोककाल (10वीं शताब्दी) सबसे महत्वपूर्ण बन्दरगाह कावेरीपट्टनम था।
- चोलों की राजधानी कालक्रम के अनुसार इस प्रकार थी- उरैयूर, तंजौर, गंगैकोड, चोलपुरम् और कांची।
- शैव संत इसानशिव पंडित राजेंद्र-I के गुरु थे।
- विष्णु के उपासक अलवार और शिव के उपासक नयनार संत कहते थे
No comments:
Post a Comment