पुष्यभूति वंश
➢ पुष्यभूति वंश के बारे में महत्वपूर्ण बातें:
- गुप्त वंश के पतन के बाद हरियाणा के अम्बाला जिले के थानेश्वर नामक स्थान पर नरवर्ध्दन के द्वारा पुष्यभूति वंश की स्थापना हुई।
- पुष्यभूति वंश का सबसे प्रतापी शासक प्रभाकरवर्धन था।
- प्रभाकरवर्धन ने अपने पुत्री राजश्री का विवाह मौखिरी वंश के शासक ग्रहवर्मन से किया।
- मालवा नरेश देवगुप्त और गौड़ शासक मिलकर ग्रहवर्मन की हत्या कर दी।
- प्रभाकरवर्धन के बाद राज्यवर्धन गद्दी पर बैठा, जिसकी हत्या शशांक (गौड़ शासक) नेे कर दी।
- राज्यवर्धन के बाद 606 ई0 में 16 वर्ष की अवस्था में हर्षवर्धन राजगद्दी पर बैठा।
- हर्षवर्धन की प्रथम राजधानी थानेश्वर (कुरुक्षेत्र के निकट) थी। बाद में इसने अपनी राजधानी कन्नौज स्थापित की।
- हर्षवर्धन के दरबार के प्रसिद्ध कवि थे- बाणभट्ट।
- हर्षवर्धन की रचना है- नागानंद, रत्नावली, और प्रियदर्शिका।
- हर्षवर्धन शिव का उपासक था।
- चीनी यात्री ह्वेनसांग हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत आया था।
- ह्वेनसांग को यात्रियों में राजकुमार, नीति का पंडित और वर्तमान शाक्यमुनि कहा जाता है।
- ह्वेनसांग भारत में नालंदा विश्वविद्यालय में पढ़ने और बौद्ध ग्रंथ संग्रह करने के उद्देश्य से आया था।
- हर्षवर्धन शिलादित्य के नाम से जाना है।
- हर्ष ने परम् भट्टारक नरेश की उपाधि धारण की थी।
- हर्षवर्धन प्रतिदिन 500 ब्राह्मणों और 1000 बौद्ध भिक्षुओं को भोजन कराता था।
- हर्ष ने 643 ई0 में कन्नौज और प्रयाग में दों विशाल धार्मिक सभाओं का आयोजन किया। हर्षवर्धन के द्वारा प्रयाग में आयोजित सभा को मोक्ष-परिषद् कहा गया है।
- बाणभट्ट के हर्षचरित के अनुसार हर्ष की मंत्रिपरिषद् इस प्रकार थी-
- अवन्ति- युद्ध और शांति का मंत्रि।
- सिंहनाद- हर्ष की सेना का महासेनापति।
- कुन्तल- अश्व सेना का मुख्य अधिकारी।
- स्कन्दगुप्त- हस्ति सेना का प्रमुख।
- साधारण सैनिकों को चाट और भाट, अश्व सेना के अधिकारियों को बृहदेश्वर, पैदल सेना के अधिकारियों को बलाधिकृत और महाबलाधिकृत कहा जाता था।
नोट: हर्षचरित के लेखक है- बाणभट्ट।
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