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Sunday, August 12, 2018

भक्ति आन्दोलन के बारे जाने।


                   भक्ति आन्दोलन


  • भक्ति आन्दोलन की शुरूआत छठी शताब्दी ई0 में तमिल क्षेत्र से हुई जो कर्नाटक और महाराष्ट्र में फैल गई।
  • भक्ति आन्दोलन का विकास बारह अलवार वैष्णव संतो और तिरसठ नयनार शैव संतो ने किया।
  • शैव संत अप्पार ने पल्लव राजा महेन्द्रवर्मन को शैव धर्म स्वीकार करवाया।
  • भक्ति कवि-संतो को संत कहा जाता था। और इनके दो समूह थे। प्रथम समूह वैष्णव संत थे जो महाराष्ट्र में लोकप्रिय हुए। वे भगवान विठोबा के भक्त थे। विठोबा पंथ के संत और उनके अनुयायी वरकरी या तीर्थयात्री कहलाते थे, क्योंकि हर वर्ष पंढरपुर की तीर्थयात्रा पर जाते थे। दुसरा समूह पंजाब और राजस्थान के हिंदी भाषी क्षेत्रों में सक्रिय था। 
  • भक्ति आन्दोलन को दक्षिण भारत से उत्तर भारत में 12वीं शताब्दी के प्रारंभ में रामानंद के द्वारा लाया गया।
  • रामानंद की शिक्षा से दो संप्रदायों का जन्म हुआ, सगुण जो पुनर्जन्म में विश्वास रखता है और निर्गुण जो भगवान के निराकार रूप को पूजता है।
  • सगुण संप्रदाय के सबसे प्रसिद्ध व्याख्याताओं में थे, तुलसीदास और नाभादास जैसे राम भक्त और मीराबाई, चैतन्य, सूरदास, और वल्लभाचार्य जैसे कृष्ण भक्त 
  • निर्गुण संप्रदाय के सबसे प्रसिद्ध प्रतिनिधि कबीर थे, जिन्हे उत्तर भारतीय पंथों का आध्यात्मिक गुरु माना गया है। 
 भक्ति आन्दोलन के प्रमुख संत 

रामानुजाचार्य: इन्होने राम को अपना आराध्य माना। इनका जन्म 1017 ई0 में मद्रास के निकट पेरूम्बर नामक स्थान पर हुआ था। रामानुजाचार्य ने वेदांत में शिक्षा अपने गुरु, कांचीपुरम के यादव प्रकाश से प्राप्त किया था।

रामानंद: रामानंद का जन्म उत्तर प्रदेश के प्रयाग में हुआ था। इनकी शिक्षा प्रयाग और वाराणसी में हुई। इन्होने अपना संप्रदाय सभी जातियों के लिए खोल दिया। रामानुजाचार्य के भाँति इन्होने भी भक्ति को मोक्ष का एकमात्र साधन माना।

कबीर: कबीर का जन्म 1425 ई0 में एक विधवा बाह्यणी के गर्भ से हुआ था, लेकिन इनका पालन पोषण एक जुलाहा के घर पर हुआ। इन्होने राम, रहीम, हजरत, अल्लाह आदि को एक ही ईश्वर के अनेक रूप माना। इन्होंने जाति-प्रथा, धार्मिक कर्मकांड, मुर्तिपूजा, जप-तप और अवतारवाद आदि का विरोध किया और निराकार एंव एकेश्वरवाद की उपासना को महत्त्व दिया। कबीर के उपदेश सबद सिक्खों के आदिग्रंथ में संगृहीत हैं।

गुरु नानक:  गुरु नानक का जन्म 1469 ई0 में पजांब (पाकिस्तान) के तलवंडी नामक स्थान पर हुआ था। उन्होंने देश का पाँच बार चक्कर लगाया, जिसे उदासीस कहा जाता हैं। उन्होंने कीर्तनों के माध्यम से उपदेश दिए। गुरु नानक ने सिख धर्म की स्थापना की। गुरु नानक सूफी संत बाबा फरीद से प्रभावित थे।

चैतन्य स्वामी: चैतन्य स्वामी का जन्म 1486 ई0 में नदिया (बंगाल) के मायापुर गाँव में हुआ था। इन्होंने गोसाई संघ की स्थापना की और साथ ही संकीर्तन प्रथा की शुरुआत की। इनके दार्शनिक सिद्धांत को अचिंत्य भेदाभेदवाद के नाम से जाना जाता हैं। संन्यास लेने के बाद इन्होंने पुरी में भगवान जगन्नाथ की दो दशक तक उपासना की।

गोस्वामी तुलसीदास: इनका जन्म उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले में राजापुर गाँव में 1554 ई0 में हुआ था। इन्होने रामचरितमानस की रचना की।

रैदास: ये जाति से चमार थे। ये रामानंद के बारह शिष्यों में से एक थे। ये जूता चप्पल बनाकर जीविका चलाया करते थे। मीराबाई ने इन्हे अपना गुरु माना हैं। इन्होने रायदासी सम्प्रदाय की स्थापना की।

दादू-दयाल: ये कबीर के अनुयायी थे। इनका जन्म 1554 ई0 में अहमदाबाद में हुआ था। इनका संबंध धुनिया जाति से था। साँभर में आकर इन्होने ब्रह्म सम्प्रदाय की स्थापना की। अकबर ने धार्मिक चर्चा के लिए इन्हें एक बार फतेहपुर सीकरी बुलाया था।



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